कौन सी करवट ले रही पहाड़ की राजनीति?

हिमाचल प्रदेश की सत्ता को लेकर हमेशा से यह कहा जाता है कि यहां हर पांच साल में बाबू मंत्रियों की बात सुनना बंद कर देते हैं, फाइलों की आवाजाही और सरकारी मशीनरी ठप हो जाती है। क्योंकि, इस पहाड़ी राज्य में ऐसा होने के पीछे जो सबसे स्थिर कारण रहा है, वह है परिवर्तन। यानी कि कुल मिलाकर कहा जाए तो बीते पिछले तीस सालों में सत्ता कांग्रेस और भाजपा के बीच बारी-बारी से आई है। भले ही राज्य में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। बावजूद इसके इस बार हालात के मिजाज कुछ अलग ही दिख रहे हैं। सचिवालय में काम उतना ही सलीके से चलता देखा जा सकता है, जितना कि हो सकता है। शिमला में हिमाचल प्रदेश सचिवालय में काम करने वाले एक वरिष्ठ सरकारी कर्मचारी की मानें तो कर्मचारी सब कुछ पहले की ही तरह सुन रहे हैं और बीते सालों की कहानी दोहराने जैसा कुछ नजर नहीं आ रहा है।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर मृदुला शारदा बीजेपी और कांग्रेस की सत्ता का लगातार रोटेशन का कारण बताते हुए कहती हैं कि “भाजपा और कांग्रेस के कैडर वोट कमोवेश यहां बरकरार हैं। साथ ही यहां फ्लोटिंग वोट ज्यादा नहीं हैं।”

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