अमृतपाल की गिरफ्तारी के बाद की चुनौती

खालिस्तान की मांग करने वाले ‘वारिस पंजाब दे’ नामक संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह की रविवार की सुबह गिरफ़्तारी के बाद साम्प्रदायिक सद्भाव और शांति बनाये रखने की जिम्मेदारी पंजाब व केन्द्र सरकार के साथ-साथ नागरिकों की है। आशा की जाये कि इस अलगाववादी नेता की गिरफ्तारी को राजनैतिक मुद्दा नहीं बनाया जायेगा। पंजाब के मोगा के रोड़ेवाल गुरुद्वारे के बाहर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के अंतर्गत अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार कर उसे डिब्रूगढ़ (असम) जेल ले जाया गया। खालिस्तान की मांग करने के अलावा एक थाने पर हमला करने और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह को जान से मारने की धमकी सहित 10 मामले हैं। पिछले 36 दिनों से वह फरार था।

रोड़ेवाला जरनैल सिंह भिंडरावाले का गांव है जहां के गुरुद्वारे में अमृतपाल शनिवार की रात आ गया था। गुरुद्वारे की पवित्रता का ख्याल रखते हुए पुलिस ने उसमें प्रवेश नहीं किया वरन गांव को घेरकर धार्मिक स्थल के बाहर उसे हिरासत में लिया। राज्य भर में हाई एलर्ट जारी किया गया है तथा उन धर्मस्थलों पर विशेष तैनाती है जिनका सम्बन्ध खालिस्तान आंदोलन से किसी भी प्रकार से रहा है। पुलिस ने अफवाहों पर ध्यान न देने की बात कही है। अमित शाह ने पंजाब सरकार की पीठ थपथपाई है। आप पार्टी ने अपनी सरकार द्वारा वक्त पड़ने पर कड़े कदम उठाने की क्षमता की ओर ध्यान दिलाया है तो कांग्रेस ने इस बात की जांच की मांग की है कि अमृतपाल को भागने में किसने मदद की।

पाकिस्तान से सटे होने के कारण पंजाब संवेदनशील तो है ही, यही राज्य खालिस्तान आंदोलन का केन्द्र भी रहा था जिसके चलते दो कौमों के बीच का भाई-चारा बिगड़ा था। 1980 के आसपास जरनैल सिंह भिंडरावाले की अगुवाई में यह मांग इस तरह से उठी थी कि उसने पंजाब में सदियों से रहते आये हिन्दुओं व सिखों को बांट दिया था। बड़ी संख्या में निर्दोषों ने अपनी जानें गंवाई थीं। 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार भी इसी आंदोलन की देन थी जिसमें भारतीय सेना को सिखों की श्रद्धा के सबसे बड़े केन्द्र स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करना पड़ा था। इस सैन्य कार्रवाई ने देश की बहादुर व देशभक्त कौम को ऐसा आहत किया था कि उसकी परिणति तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या से हुई थी। यह रक्तरंजित कहानी यहीं पर नहीं ठहरी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ पूरे देश में दंगे भड़क गये थे जिनमें बड़ी संख्या में निर्दोष सिखों के प्राण गये थे और उनकी सम्पत्तियों को नुकसान हुआ था।

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