चिराग से छिनी LJP, उद्धव से छिन सकती है शिवसेना

शिवसेना के चुनाव चिह्न ‘धनुष-कमान’ पर फैसले के लिए चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिल गई है। मंगलवार को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने चुनाव आयोग की कार्यवाही पर लगी रोक हटा दी। इसके थोड़ी देर बाद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का बयान भी आ गया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग रूल ऑफ मेजॉरिटी के आधार पर इस विवाद का निपटारा करेगा।

रूल ऑफ मेजॉरिटी क्या होता है, इसके आधार पर चुनाव आयोग कैसे फैसला करेगा और असली शिवसेना को लेकर किसका पलड़ा भारी है। तो चलिए शुरू करते हैं…

रूल ऑफ मेजॉरिटी क्या होता है, जिसका जिक्र मुख्य चुनाव आयुक्त ने किया है?
 द रिजर्वेशन सिंबल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर-1968 के पैरा 15 के मुताबिक जब भी पार्टी के सिंबल को लेकर इस तरह का विवाद होता है, तो चुनाव आयोग सबसे पहले मामले की पूरी पड़ताल करता है। वह इसके सभी पहलुओं पर गौर करता है। बाकायदा दोनों दावेदारों को बुलाकर सुनवाई भी करता है।

इसके बाद वो रूल ऑफ मेजॉरिटी के आधार पर फैसला करता है। यानी किस दावेदार के पास चुने हुए प्रतिनिधि ज्यादा हैं और किसका संगठन के भीतर दबदबा है। 1969 में चुनाव आयोग ने इसके आधार पर फैसला किया था। तब कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई थी। एक जिसे जगजीवन राम लीड कर रहे थे और दूसरा जिसकी अगुआई एस निजलिंगप्पा कर रहे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *