दक्षिण एशियाई लोगों में भूलने की बीमारी का जोखिम ज्यादा

ब्रिटेन स्थित क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च में सामने आया है कि श्वेतों की तुलना में अश्वेतों, दक्षिण एशियाई लोगों में डिमेंशिया, यानी भूलने की बीमारी का जोखिम ज्यादा है। वहीं गरीब इलाकों में इसका खतरा दोगुना से भी ज्यादा है।

नस्लभेद, जातिवाद और गरीबी से उपजे तनाव से इस बीमारी का जोखिम और बढ़ सकता है। रिसर्च में कहा गया कि स्वास्थ्य सेवाओं में असमानताओं को दूर करने व अलग-अलग समुदायों में डिमेंशिया की रोकथाम करने की जरूरत है।

द लैंसेट रीजनल हेल्थ यूरोप’ में छपी स्टडी के मुताबिक बाकियों के मुकाबले गरीब क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में डिमेंशिया का जोखिम दोगुना से भी ज्यादा है। गरीबी से जुड़े डिमेंशिया के कम से कम 10 मामलों में से एक के साथ ऐसा पाया गया है। इसी तरह हर 10 मामलों में कम से कम एक जातिवाद से जुड़ा पाया गया।

स्टडी में डिमेंशिया से पीड़ित 4,137 लोगों का रिकॉर्ड अस्पताल और अन्य सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से जुटाया गया। उनके समान उम्र के 15,754 स्वस्थ लोगों से उनकी तुलना की। इसके बाद संबंधित तथ्यों का अध्ययन किया। इसमें सामने आया कि अल्पसंख्यक समूहों के स्वास्थ्य पर नस्लीय असमानताओं का प्रभाव पड़ता है और यह भी साबित हुआ कि अश्वेत समुदाय इस बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।

प्रमुख रिसर्चर्स फाझा बोथोंगो ने कहा, ‘जातीयता, नस्लभेद या गरीबी का डिमेंशिया के बीच संबंध को समझने के लिए और अधिक स्टडी की जरूरत है।’

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