आज ‘वॉइस ऑफ स्लम’ से बदल रहे हजारों बच्चों की जिंदगी

कुछ करने की जिद हो तो सब कुछ संभव है। जब हम कचरे बीनने वाले समाज को बदलने की कोशिश कर सकते हैं, तो दुनिया में कोई भी कुछ भी कर सकता है। ये शब्द हैं देव प्रताप सिंह के, जो मात्र 11 साल की उम्र में अपने घर से भाग गए थे। भूख मिटाने के लिए रेलवे स्टेशन पर कचरा उठाया, होटलों में बर्तन भी धोए। यहां तक कि मजबूरी में छोटी-मोटी चोरियां कीं और पुलिस स्टेशन में भी बंद रहे।

आज वे अपनी पत्नी चांदनी खान के साथ दूसरे बच्चों की वॉइस, यानी आवाज बने हैं। कोई दूसरा बच्चा उनके जैसा समाज से कटा, अनपढ़ या भूखा न रहे, ऐसे बच्चों के लिए ‘वॉइस ऑफ स्लम’ नाम से NGO की शुरुआत की। जिसके जरिए झुग्गी-झोपड़ियों के हजारों बच्चों की मदद कर रहे हैं। वे बच्चे, जो न तो स्कूल जाना चाहते थे न ही उनके परिवार में कोई पढ़ा है।

आज इनकी बदौलत बच्चे सड़क पर फल-सब्जी बेचने की बजाय इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने जाते हैं, फर्राटेदार इंग्लिश में बात करते हैं और कुछ अलग करने की चाह भी रखते हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इन दोनों को टीचर्स डे पर सम्मानित भी किया।

‘वॉइस ऑफ स्लम’, दिल्ली स्थित एक NGO है, जो समाज के अंडर प्रिविलेज्ड बच्चों को एजुकेशन के जरिए समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम कर रहा है। देव प्रताप कहते हैं, “शिक्षा दुनिया का सबसे शक्तिशाली हथियार है। इससे कुछ भी बदल जा सकता है। कई बार ऐसा कहना काफी नहीं होता, आप उन बच्चों को कैसे पढ़ा सकते हैं, जो पढ़ना ही नहीं चाहते? जिनके परिवार में आज तक कोई पढ़ा न हो?

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