राष्ट्रीय शोधार्थी समागम” भारतीय दृष्टि से शोध एवं अनुसंधान की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगा : उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार
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कृतज्ञता का भाव, भारत की सभ्यता और विरासत है
राष्ट्र, विचार परम्परा से नहीं बल्कि विश्वास परम्परा से संचालित होता है : आचार्य मिथिलेश
शोधार्थियों में मौलिकता के साथ, विश्लेषण एवं संश्लेषण दोनों ही आवश्यक : श्री कानिटकर
“भारत के पुनरुत्थान के लिए सहयोगात्मक अनुसंधान की पहल” विषयक तीन दिवसीय “राष्ट्रीय शोधार्थी समागम” का शुभारंभ
भोपाल : कृतज्ञता का भाव, भारत की सभ्यता एवं विरासत है और भारतीय ज्ञान परम्परा का अभिन्न अंग है। हमारे पूर्वजों ने प्रकृति, नदियों एवं सूर्य सहित समस्त ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण के लिए, कृतज्ञता भाव से समृद्ध परम्पराओं को स्थापित किया था। भारत का ज्ञान, ज्ञान परम्परा एवं मान्यता के रूप में भारतीय समाज में सर्वत्र विद्यमान है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर, भारतीय समाज में परंपराएं एवं मान्यताएं स्थापित हुई हैं। हर विधा-हर क्षेत्र में विद्यमान भारतीय ज्ञान को युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में नए सन्दर्भों में, पुनः शोध एवं अनुसंधान कर वर्तमान वैश्विक आवश्यकतानुरूप दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता है। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने शनिवार को दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान भोपाल के तत्वावधान में मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के डॉ. जगदीश चंद्र बसु सभागृह में आयोजित “भारत के पुनरुत्थान के लिए सहयोगात्मक अनुसंधान की पहल” विषयक तीन दिवसीय “राष्ट्रीय शोधार्थी समागम” के शुभारंभ सत्र में कही। मंत्री श्री परमार ने कहा कि शोधार्थियों को समाज के प्रश्नों का समाधानकारक शोध करने की आवश्यकता है। शोधार्थियों के शोध का प्रभाव, समाज के दृष्टि पटल पर परिलक्षित होना चाहिए।
उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने “राष्ट्रीय शोधार्थी समागम” के आयोजन एवं सफलता के लिए आयोजकों एवं सहभागियों को शुभकामनाएं दीं। श्री परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसरण में भारत केंद्रित शिक्षा के लिए यह समागम उपयोगी होगा। यह समागम, प्रदेश के समस्त उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध एवं अनुसंधान के लिए अभिप्रेरक बनेगा। श्री परमार ने कहा कि “राष्ट्रीय शोधार्थी समागम” भारतीय दृष्टि से शोध एवं अनुसंधान की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगा। श्री परमार ने कहा कि स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने में भारत केंद्रित शिक्षा की महती भूमिका होगी। भारत को विश्व मंच पर पुनः सिरमौर बनाने के लिए सभी की सहभागिता आवश्यक है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सारस्वत अतिथि सिद्धपीठ श्री हनुमन निवास अयोध्या धाम के पीठाधीश्वर आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा, अतीत के कालखंडों में गुरुकुल शिक्षा पद्धति के नष्ट किए जाने से विलोपित हुई है। गुरुकुल शिक्षा पद्धति में पहली कक्षा से ही शोध किया जाना प्रारंभ हो जाता था। आचार्य ने कहा कि वेदों में, भारतीय ज्ञान परम्परा विद्यमान है। शोध के लिए मौलिकता की ओर वापस लौटना होगा। आचार्य ने कहा कि राष्ट्र, विचार परम्परा से नहीं बल्कि विश्वास परम्परा से संचालित होता है। शोध के लिए विश्वास परम्परा की ओर लौटने की आवश्यकता है।