लोन हो गया है महंगा लेकिन सेविंग पर उतना नहीं मिल रहा ब्याज
डोमेस्टिक और ग्लोबल दोनों ही लेवल पर महंगाई एक बड़ी चिंता बनी हुई है। कई बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में महंगाई कई दशक के पीक पर है। बीते अप्रैल महीने के दौरान भारत में महंगाई की दर 7.97 फीसदी थी। जबकि, इसी महीने अमेरिका में महंगाई दर 8.3 फीसदी (1981 के बाद से हाईएस्ट) थी। इसलिए प्रमुख सेंट्रल बैंकों ने पॉलिसी सख्त करते हुए ब्याज दरों में बढ़ोतरी का रास्ता अपनाया है। घरेलू स्तर पर भी रिजर्व बैंक (RBI) का फोकस ग्रोथ की जगह महंगाई को कंट्रोल करने पर है। महंगाई को तय लक्ष्य के भीतर रखने के लिए आरबीआई ने भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी (रेट हाइक साइकिल) शुरू कर दी है। उधर अमेरिकी फेडरल बैंक ने भी दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है। ऐसे में निवेशक क्या करें?
बैंकों के पास पर्याप्त लिक्विडिटी (डिस्बर्समेंट के लिए सरप्लस मनी) है और लोन की डिमांड भी ज्यादा है। ऐसे में उन्हें डिपॉजिट रेट में बढ़ोतरी की जरूरत नहीं दिख रही है। लेंडिंग रेट में बढ़ोतरी से कॉरपोरेट्स के लिए कर्ज लेने की लागत में इजाफा हो सकता है। इसके चलते इकोनॉमिक ग्रोथ पर असर पड़ सकता है। वहीं दूसरी ओर फ्यूल एक्साइज ड्यूटी में कटौती, एलपीजी सब्सिडी और खाद्य व उर्वरक सब्सिडी बढ़ाने जैसे प्रयासों के चलते सरकार के रेवेन्यू में भी कमी आएगी जिससे सरकारी उधारी बढ़ सकती है।