तालिबान के खिलाफ सुलगी विद्रोह की चिंगारी

 अफगानिस्‍तान में करीब 2 दशक पहले तालिबान ने साल 2001 में बसंत के महीने में नाटो सेनाओं पर घातक हमले शुरू किए थे। तालिबान की कोशिश थी कि अफगानिस्‍तान की सत्‍ता में फिर से काबिज हुआ जाए। अफगान पहाड़‍ियों पर बर्फ पिघल चुकी थी और तालिबानी आतंकियों ने नाटो सैनिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। अब जब तालिबान ने सत्‍ता हासिल कर ली है, एक बार फिर से समय का चक्र घूम गया है। अफगानिस्‍तान की अशरफ गनी सरकार के कई धड़ों ने कई प्रांतों में धड़ाधड़ हमले शुरू कर दिए हैं।

अफगानिस्‍तान पर केंद्रीत गंधारा वेबसाइट के मुताबिक ये तालिबान विरोधी गुट पश्चिमी देशों की ओर से प्रशिक्ष‍ित किए गए उन हजारों अफगान सैनिकों को अपने पाले में ला रहे हैं जिन्‍होंने अफगानिस्‍तान में सत्‍ता में बदलाव के बाद अपनी नौकरी गंवा दी है। इन पूर्व अफगान नेताओं का मानना है कि यह विद्रोह देश में एक राष्‍ट्रीय बगावत में बदल जाएगा क्‍योंकि तालिबानी शासन में महिलाओं, जातीय और धार्मिक अल्‍पसंख्‍यकों का दमन किया जाता है। ये विद्रोही गुट अफगानिस्‍तान से सटे पड़ोसी देशों और वैश्विक शक्तियों से मदद हासिल करने की कोशिश में हैं जो तालिबान के आने से चिंतित हैं। वह भी तब जब इस्‍लामिक स्‍टेट खुरासान ने अपने हमले तेज कर दिए हैं।

पंजशीर घाटी में तालिबान के खिलाफ लगातार हमले
उधर, तालिबान का मानना है कि यह प्रतिरोध बहुत छोटा है और महत्‍वहीन है। इस प्रत‍िरोध से बेहद करीब से जुड़े अफगानिस्‍तान के विदेश मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘तालिबान के सत्‍ता में आने के बाद से कुछ भी नहीं बदला है। मुझे पूरा विश्‍वास है कि तालिबान के खिलाफ हम एक जोरदार बगावत को देखेंगे।’ अफगानिस्‍तान में सबसे ज्‍यादा प्रभावी तालिबानी विरोधी गुट नैशनल रजिस्‍टेंस फ्रंट है जिसका नेतृत्‍व अहमद मसूद कर रहे हैं। अहमद मसूद नार्दन अलायंस के नेता रहे अहमद शाह मसूद के बेटे हैं।

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