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मुझे हराने BJP ने पूरी ताकत झोंक दी, बड़े-बड़े नेताओं ने रैलियां की; लेकिन मैं डटी रही

उत्तर प्रदेश में इस बार कांग्रेस ने 40% महिलाओं को टिकट दिए था। इनमें से जीत सिर्फ एक महिला के हिस्से आई। वो मैं यानी आराधना मिश्रा हूं। यह जीत इतनी आसान नहीं थी। मैंने अपराध, हत्या, गुंडई सबको पार किया। घर में हमेशा से राजनीतिक माहौल रहा है। पांच साल की थी तब से पापा के साथ उनके राजनीतिक दौरों पर जाया करती थी। साल 1980 में पापा ने पहली दफा रामपुर खास से विधानसभा का चुनाव जीता तो कहा कि मेरा परिवार अब बड़ा हो गया।

उसके बाद पापा एक के बाद एक चुनाव जीतते गए। लगातार 9 बार उन्होंने उसी सीट से जीत हासिल की। इसके लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम भी दर्ज हुआ। इस तरह हमारा परिवार लगातार बढ़ता गया। पापा की सीट यानी रामपुर खास हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गई। हमारी स्कूल की छुट्टियां भी होतीं तो भी हम वही रहते थे। सुबह-शाम या आधी रात हो हमेशा घर का दरवाजा हर किसी के लिए खुला रहता था।

मैं हमेशा से वोकल थी। लोगों से मिलना-जुलना, किस्से कहानियां सुनना और सुनाना अच्छा लगता था। यही वजह रही कि मैं भी राजनीति में करियर तलाशने लगी। साल 2002 में मैंने ब्लॉक प्रमुख के इलेक्शन से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। सभी को लगता होगा कि पापा का इलाका है तो बहुत आसानी से जीत मिली होगी, लेकिन नहीं। लोग तरह तरह की बातें किया करते थे। ताने मारते थे कि लड़की होकर चुनाव लड़ रही है, घर से बाहर निकल रही है।

दूसरी बात वो राजा भइया का इलाका था। उनके लोगों ने खूब कहर मचाए। पहली दफा मैंने खूनखराबा देखा। अपने साथियों को पिटते देखा, मरते देखा, किडनैप होते देखा।

एक दफा इन सब से मैं विचलित भी हुई, लेकिन फिर तय किया कि अपने टारगेट से पीछे नहीं हटूंगी। जो कुछ मेरे साथ हुआ, सब फेस किया और वक्त के साथ मजबूत बनती चली गई। एक नेता के तौर पर मेरी पर्सनालिटी में निखार आते गया। मुझ पर चुनाव जीतने का पागलों सा जुनून सवार हो गया और मैं जीती भी। एक के बाद एक लगातार तीन बार ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में परचम लहराया।

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