घरेलू निवेशकों का मिला सहारा, लेकिन अन्य स्कीमों में मंदी

भारतीय शेयर बाजार में पिछले साल मार्च की गिरावट के बाद से भारी तेजी आई है। पिछले मार्च के निचले स्तर से सेंसेक्स करीब 137% और निफ्टी 142% तक बढ़ चुके हैं। घरेलू शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों के साथ-साथ खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी में भी रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। बहुत सारी कंपनियों के लिए शेयर बाजार में जारी तेजी अपने कारोबार के विस्तार के लिए बाजार से पूंजी जुटाने का सुनहरा मौका बनकर आई है। शेयर बाजार में आई मजबूती से घरेलू अर्थव्यवस्था को कोविड की मार से काफी हद तक उबरने में मदद मिली है। हालांकि इस तेजी का अन्य पारंपरिक निवेश विकल्पों मसलन फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स पर नकारात्मक असर भी हुआ है।

इन 2 वजह से हमारे यहां बढ़ रहे हैं खुदरा निवेशक
ब्याज दरों में कमी, पारंपरिक निवेश में रिटर्न घटा
RBI द्वारा ब्याज दरों (रेपो रेट) में की गई भारी कटौती (फरवरी 2019 और फरवरी 2020 के बीच 135 बेसिस प्वाइंट की कटौती के बाद मार्च-मई 2020 के बीच 115 बेसिस प्वाइंट की कटौती) से फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स पर मिलने वाले ब्याज में गिरावट आ गई। इस वजह से लोगों का रुझान ज्यादा रिटर्न के मकसद से शेयर बाजार की तरफ हुआ है। उदाहरण के तौर पर एक साल की बैंक एफडी पर ब्याज फिलहाल तकरीबन 4 से 5% है जो 3 साल पहले 7 से 8% हुआ करता था।

नई पीढ़ी में बाजार की ज्यादा समझ, जोखिम भी ज्यादा
नए पढ़े-लिखे और युवा टेक सेवी निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था, इसके फंडामेंटल्स व भविष्य को लेकर बड़े पॉजिटिव हैं और इनकी तकनीकी और बाजार की समझ भी काफी बेहतर है। वे ज्यादा जोखिम लेने में भी विश्वास करते हैं। इसके अलावा देश में पिछले कुछ सालों में मध्यम वर्ग की प्रति व्यक्ति आय में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है, फलस्वरूप ऐसे लोगों की खर्च करने योग्य आय भी बढ़ी है जो निवेश के तौर पर शेयर बाजार में आ रही है।

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