श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला: जो वर्तमान क्षण को देखता है… वह पंडित हैं- मुनि प्रशमरति विजय (देवर्धि साहेब)

दक्षिणापथ, नगपुरा/दुर्ग। ” प्रमाद है, वहाँ भविष्य में पछतावा होगा ही। क्षण मात्र का प्रमाद भी पछतावा का कारण बन सकता है। जो वर्तमान क्षण को जानता है, वह पंडित है। वर्तमान क्षण को देख सकता है, वर्तमान क्षण को समझ सकता है, वर्तमान क्षण पर नजर रखता है और वर्तमान में होने वाले चूक पर ध्यान रखता है वह पंडित है। मनुष्य जीवन में प्रमाद हर क्षण चालू ही है। प्रमाद से बचने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रमाद से बचने के लिए वर्तमान क्षण पर नजर रखना चाहिए ” उक्त उद्गार श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चा़तुर्मासार्थ विराजित श्री प्रशमरति विजय जी म. सा. (देवर्धि साहेब) ने प्रवचन श्रृंखला में श्री आचारांग सूत्र की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए।
पूज्य श्री देवर्धि साहेब ने कहा कि प्रमाद का अर्थ आलस्य नहीं होता। प्रमाद का सामान्यतः अर्थ उपेक्षा होती है। मनुष्य के जीवन में चार प्रकार के प्रमाद होता है। पहला- शक्ति होने के बावजूद,उसका उपयोग नहीं करना। क्षमता होने के बावजूद प्रवृत्ति नहीं करना। दूसरा -जो बिल्कुल जरूरी है उसे नहीं करना, उसे टालना। तीसरा -शक्ति नहीं है फिर भी अतिरेक प्रयत्न करना। मर्यादा से बाहर जाना। सीमा को तोड़ने का प्रयास भी प्रमाद है। चौथा- जो जरूरी नहीं है उस कार्य को करते रहना । जो जरूरी नहीं है वो हम करते रहते हैं। जो जरूरी है उस प्रवृत्ति को आने वाले कल पर छोड़ देते हैं। जरूरी प्रवृत्ति को टालते रहते हैं। धर्म की प्रवृत्ति से दूर भागते हैं, संसार का एक भी मौके से चूकते नहीं हैं। पुण्य के प्रभाव से मनुष्य जीवन में बहुत कुछ मिल जाता है लेकिन उस सामर्थ्य का उपयोग सही दिशा में नहीं करते हैं। आपके पास दूसरों की आँसू पोछने की क्षमता है, दूसरों की भलाई कर सकते हैं लेकिन उस दिशा में प्रयत्न नहीं करते। आपकी आवश्यकताएँ सीमित हो सकती है लेकिन आवश्यकताओं का विस्तार ही करते जाते हैं। जिसे आप आवश्यकता मान रहे हैं वह व्यवस्था है। पाँच, सात वस्त्रों से काम चल सकता हैं, लेकिन वस्त्रों का अमर्यादित संग्रह होती है। यह प्रवृत्ति भी प्रमाद है। हर व्यक्ति का अलग-अलग क्षेत्र में सामर्थता होती है। दूसरों को देखकर अपने शक्ति का अपव्यय मत करो। कुदरत का नियम है, कुछ कर रहे हो, उसी क्षण बहुत कुछ नहीं कर रहे हो। वृद्धावस्था के लिए सांत्वना दे सकते हैं कि अभी समय है। रोग कब आ जाये, इसका कोई समय निर्धारित नहीं है, इसलिए निरन्तर खुद के प्रति जागरूक रहें। पापवृत्ति से बचने का प्रयास करें। पाप प्रवृत्ति करने से पहले , खुद को बोलो– बाद में करेंगे। अच्छा काम करना है तो खुद को बोलो -अभी करना है। जब भी उत्तम मनोरथ हो, कल पर ना टालें। उत्तम मनोरथ हुआ उसी क्षण उस दिशा मे प्रयत्न करें। अवसर बीत जाने के बाद हाथ मे सिर्फ पछतावा ही बचता है। प्रबंधन का गुर है, -कभी-कभी खुद को ना बोलना सीखें। मेरे जीवन में कौन-कौन से प्रमाद जारी है इसका चिंतन कीजिए। जो जरूरी नहीं है उसे ना बोलना सीखें। वर्तमान क्षण के लिए जागरूक रहें।