समाज की जंजीरों को तोड़कर कश्मीर से निकली उम्मीद की रागिनी
मुंबई: कहते हैं, एक सच्चे कलाकार की कला हर धर्म, जाति, पंथ और लिंग की सीमाओं से ऊपर उठकर सिर्फ इंसानियत और भावनाओं की जुबान बोलती है। उसकी कला को समाज की बेड़ियां जकड़ नहीं सकतीं। दूसरे शब्दों में कहें तो एक कलाकार को कैद किया जा सकता है लेकिन उसकी कला को नहीं। अभिनेत्री सबा आजाद और सोनी राजदान की फिल्म ‘सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइड’ इसी सच को बयां करती है।
कश्मीर की एक साधारण सी लड़की जो सपने तो देखती है मगर उन्हें पूरा करने की उसे अनुमति नहीं है। क्यों? क्योंकि वो एक लड़की है, जिसे शादी करके अपने शौहर के घर जाना है। कहने को तो ‘आजाद भारत’ में साल 1954 की बात है, लेकिन आजादी का असली मतलब क्या है, ये शायद किसी को नहीं पता। ये कहानी है साधारण सी लड़की ‘जेबा’ की, जो आगे चलकर कश्मीर की ‘नूर बेगम’ बनती हैं।