भारतीय रसोई, भारतीय समाज के कुशल एवं श्रेष्ठ प्रबंधन का उत्कृष्ट उदाहरण : उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार


कृतज्ञता का भाव, भारतीय समाज की सभ्यता एवं विरासत है : श्री परमार
उच्च शिक्षा मंत्री ने भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ किया

भोपाल : भारत की गृहणियों की रसोई में कोई तराजू नहीं होता है, गृहिणियों को भोजन निर्माण के लिए किसी संस्थान में अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं होती है। भारतीय गृहिणियों में रसोई प्रबंधन का उत्कृष्ट कौशल, नैसर्गिक एवं पारम्परिक रूप से विद्यमान है। भारत की रसोई, विश्वमंच पर प्रबंधन का उत्कृष्ट आदर्श एवं श्रेष्ठ उदाहरण है। भारतीय समाज में ऐसे असंख्य संदर्भ, परम्परा के रूप में प्रचलन में हैं। हमारे समाज में विद्यमान ज्ञान पर, गर्व के भाव के साथ अध्ययन, शोध एवं अनुसंधान करने की आवश्यकता है। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने शुक्रवार को भोपाल स्थित मप्र भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय के सभागृह में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में आयोजित “भारत के लिए भारत का सामाजिक विज्ञान” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारम्भ अवसर पर कही।

उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक विषय पर चर्चा करने का अवसर प्राप्त होना, मेरे लिए सौभाग्य है। श्री परमार ने कहा कि भारत, सृष्टि के सृजन से ही पृथ्वी पर विद्यमान है। अंग्रेजों की पराधीनता के दौरान, अंग्रेजी सत्ता ने हमारी शिक्षा पद्धति को नष्ट कर, हमारे ज्ञान को हीन दिखाने का कुत्सित प्रयास किया। अंग्रेजी पराधीनता के पूर्व के कालखंडों में भी विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय चिंतन और दर्शन को नष्ट कर, भ्रांतियों को स्थापित करने का कुत्सित प्रायोजन किया। श्री परमार ने कहा कि विदेशी यह नहीं जानते हैं कि विज्ञान, परम्परा के रूप में भारतीय समाज में सर्वत्र विद्यमान है। यही हमारे भारत के समाज का विज्ञान है। मंत्री श्री परमार ने कहा कि कृतज्ञता का भाव, भारत की सभ्यता एवं विरासत है। किसी के कार्यों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना, कृतज्ञता भाव रूपी भारतीय दर्शन का उत्कृष्ट उदाहरण है। श्री परमार ने पेड़ों, नदियों, जलाशयों, सूर्य आदि प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों के पूजन एवं उपासना की पद्धति भारतीय समाज में परंपरागत रूप से विद्यमान है। यह परंपरा प्रकृति सहित समस्त ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भाव है। श्री परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में क्रियान्वयन के लिए, शिक्षा को भारतीय ज्ञान परम्परा से समृद्ध करने की आवश्यकता है। भारतीय शिक्षा में समाज शास्त्र को, भारतीय दृष्टिकोण के साथ सही परिप्रेक्ष्य में समझने एवं प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। इसके लिए तपस्वी के रूप में हम सभी को सहभागिता और परिश्रम करने की आवश्यकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *