चेहरा और चुनौती: संवाद से बिगड़ी बात भी बना ले जाते हैं राजनाथ
मोदी 3.0 में सबसे वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री और चार बार के सांसद राजनाथ सिंह को लगातार दूसरी बार रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है। राजनाथ सिंह पुरानी पीढ़ी के उन बिरले नेताओं में हैं, जिनकी जिनकी पक्ष-विपक्ष सभी में बराबर ‘फैन फॉलोइंग’ है। वे सबसे सुलझे और संतुलन साधने वाले नेताओं में से एक है। यही वजह है कि अटल-आडवाणी के दौर वाली सरकार में भी वे प्रभावी रहे और आज मोदी के दौर में वे अपना मजबूत वजूद बनाते हुए वरिष्ठता में नंबर 2 पर हैं। सभी दलों से संवाद कौशल में माहिर होने के कारण गठबंधन की सरकार में उनका महत्व बढ़ा है। रक्षामंत्री के दूसरे कार्यकाल में उनके सामने कई चुनौतियां भी हैं।
उत्तर प्रदेश के चंदौली के भाभोरा गांव में 1951 में जन्मे राजनाथ सिंह 13 वर्ष की आयु से ही आरएसएस की शाखाओं में जाने लगे थे। फिजिक्स से एमएससी करने के बाद मिर्जापुर के केबी डिग्री कॉलेज में पढ़ाने लगे। लेकिन, संघ और जनसंघ से नाता बना रहा। 1974 में मुख्यधारा की राजनीति में उतरे तो इमरजेंसी में दो साल जेल में रहे। 1977 में यूपी से पहली बार विधायक बने और 1991 में भाजपा की कल्याण सिंह सरकार में शिक्षा मंत्री बने तो नकल कानून से नकल माफिया की कमर तोड़कर तहलका मचा दिया था।