विशेष लेख: पोषक तत्वों से भरपूर हैै बोरे-बासी

छत्तीसगढ़ में बासी को मुख्य आहार माना गया है। बासी का सेवन समाज के हर तबके के लोग करते हैं। रात के बचे भात को पानी में डूबाकर रख देना और उसे नाश्ता के तौर पर या दोपहर के खाने के समय इसका सेवन आसानी से किया जा सकता है। इसलिए इसे सुलभ व्यंजन भी माना गया है। विशेषकर गर्मी के मौसम में बोरे और बासी को बहुतायत लोग खाना पसंद करते हैं। बोरे और बासी पर शोध हो चुका है बता दें कि बोरे और बासी पर अमेरिका में हुए शोध में पाया गया कि इसे खाने से डी-हाइड्रेशन, बीपी और हाइपरटेंशन कंट्रोल में रहता है।
छत्तीसगढ़ राज्य के निवासियों के जीवन में बासी इतना घुला-मिला है कि समय बताने के लिए भी सांकेतिक रूप से इसका उपयोग किया जाता है। जब सुबह कहीं जाने की बात होती है तो बासी खाकर निकलने का जवाब मिलता है, इससे पता चल जाता है कि व्यक्ति सुबह 8 बजे के बाद घर से निकलेगा। वहीं दोपहर के वक्त बासी खाने के समय की बात हो तो मान लिया जाता है कि लगभग एक बजे का समय है। ‘बासी खाय के बेरा’, से पता चल जाता है कि यह लंच का समय है। 
बोरे और बासी में अंतरः-छत्तीसगढ़ में लोग वर्षों से नास्ते के रूप में बोरे बासी (रात का भीगा हुआ चांवल) खाते आ रहे हैं। छतीसगढ़ में लोग अपने इस पारंपरिक भोजन बोरे-बासी को खूब चाव से खाते हैं। ये गर्मियों में शरीर को ठंडा रखने का काम करता है। दरअसल, ताजा भात यानी चावल को जब पानी में डुबोकर खाया जाता है, तो उसे बोरे कहते हैं। इसे दूसरे दिन खाने पर यह बासी कहलाता है। फिर इसे आम या नींबू का अचार, प्याज और हरी मिर्च, दही या मठ्ठा डालकर, भाजी, रखिया बड़ी, मसूर दाल की सब्जी, रात की बची अरहर दाल, कढ़ी या बड़ी-बिजौरी के साथ खाया जाता है। इसे खाने से खूब प्यास लगती है और ज्यादा पानी पीने से डि-हाइड्रेशन जैसी समस्या नहीं होती है। बताया जाता है कि इसे खाने के बाद यह शरीर के ताप को नियंत्रित करता है। जिस वजह से पड़ने वाली गर्मी और लू का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसे खाने से नींद भी अच्छी आती है।

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