अविरल महापुरुष थे श्री रामचंद्र सूरीश्वर जी महाराजा ..

-श्री उवसग्गहरं पाश्र्व तीर्थ नगपुरा मे आज पूज्यपाद आचार्य. श्री रामचंद्र सूरीश्वर जी महाराजा के पुण्यतिथि पर गुणानुवाद सभा मुनि श्री प्रशमरति विजय (देवर्धि साहेब) ने अपने अनुभूति से सभा को परिचित कराया

दक्षिणापथ, नगपुरा/दुर्ग। आज श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में दीक्षा युगप्रवर्तक सुविशाल गच्छाधिपति पूज्यपाद आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय रामचंद्र सूरीश्वर जी महाराजा की 30वीं पुण्यतिथि प्रसंग पर गुणानुवाद सभा आयोजित की गई। गुणानुवाद सभा को संबोधित करते हुए पूज्य श्री प्रशमरति विजय जी (देवर्धि साहेब) म. सा. ने कहा कि महापुरूषों के स्मरण से सुख की अनुभूति होती है। महापुरूषों का जीवन दर्शन से हमें सीख मिलती है। महापुरूषों के कार्यों का चिंतन हमें सद्कार्यों से जुड़ने की प्रेरणा देती है।
श्रमण भगवान महावीर की विशाल श्रमण परम्परा में आचार्यों की बहुत लम्बी श्रृंखला है। सभी आचार्यों ने कल से आज तक जैन धर्म की अपनी मौलिकता और वैज्ञानिकता के कारण अपने अस्तित्व को एक शाश्वत धर्म के रूप में अभिव्यक्ति दी है। इसी श्रृंखला में आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय रामचंद्र सूरी महाराजा एक तेजोमय नक्षत्र के रूप में स्थापित हुए। जिनशासन सिरताज, व्याख्यान वाचस्पति,दीक्षा युग प्रवर्तक आचार्य श्रीमद् विजय रामचंद्र सूरी महाराजा का सम्पूर्ण जीवन धर्म की सुरक्षा, भारतीय संस्कृति की सुरक्षा के लिए समर्पित रहा। पूज्यपाद आचार्य श्री रामचंद्र सूरीश्वरजी महाराजा के जीवन पर सैकड़ों ग्रंथ लिखा जा सकता हैं। महीनो आपके गुणो का वर्णन करे तो भी पूरा नहीं कर सकते, विक्रम की बीसवीं सदी में भारत पराधीन था। भारतीय संस्कृति को विलुप्त करने की मानसिकता अंग्रेजों में थी। भारतीय शास्त्रों एवं साधु संतों के प्रति अविश्वास पैदा करना, दीक्षा बंद कराना, धर्म की क्रिया को झूठाबताना और आहार-वेशभूषा में परिवर्तन कराना इनका मुख्य उद्देश्य था। अंग्रेज भारत छोड़ने से पहले ऐनकेन प्रकारेण अपनी संस्कृति को जीवित रखना चाहते थे। अपने संस्कृति को थोपकर भारतीय संस्कृति को मिटाना चाहते थे ,!कुछ स्वार्थी भारतीयो को आगे कर विघ्न पैदा कराते थे ; ऐसे कुत्सिक उद्देश्यों के विरूद्ध जैनाचार्य श्री रामचंद्र सूरीश्वर जी ने बुलंद आवाज उठाया।अपने विरोधीयो के प्रति सहानुभूति रखना ,उन्हे क्षमा करना ,ऐसे गुणो के धनी पू श्री रामचंद्र सूरी जी ने अनेकों बार कोर्ट का सामना किए। पूज्य श्री रामचंद्र सूरीश्वर जी म. सा. ने प्रवचन के माध्यम से दीक्षा-विरोध का तीव्रतम विरोध कर जन-मन के हृदय में दीक्षाधर्म की सुप्रतिष्ठा की। सैकड़ों आत्माओं को स्वयं भारी कष्ट सहकर दीक्षा प्रदान किया। दीक्षार्थी, दीक्षादाता एवं दीक्षा के आदान-प्रदान की प्रवृत्ति में आते विघ्नों को धराशायी कर दिया। आपके इस गुण से अभिभूत बन श्री संघ ने आपको “दीक्षा युगप्रवर्तक” के विरुद से नवाजा। जैन शासन के प्राण प्रश्न गिने जाते सैकड़ों मसलों में आपने जी-जान की बाजी लगाकर, मान, अपमान की परवाह किये बिना सिद्धांत प्ररूपणा एवं आचार मार्ग की सुरक्षा की। आगम-शास्त्रों की लक्ष्मणरेखा को आपने कभी तोड़ा नहीं-यह आपकी अनूठी विशेषता थी। आपके वचन, मार्गदर्शन,हित शिक्षाएँ और जीवन के एक-एक प्रसंग आराधना- प्रभावना व शासन के सुरक्षा के इच्छुक-जनों को एक दीप स्तम्भ की भांति दिशा एवं प्रकाश देता रहेगा। आज देशभर के सैकड़ों स्थानों में गुणानुवाद हो रहा है। यह आपके व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व की अद्भुत साख है।