भारत केंद्रित शिक्षा” से समृद्ध पाठ्यक्रम निर्माण के लिए, भारतीय दृष्टि की आवश्यकता : मंत्री श्री परमार
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हर क्षेत्र में विद्यमान है भारतीय ज्ञान का अनंत भंडार, सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की आवश्यकता
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में केंद्रीय अध्ययन मंडल की बैठक एवं कार्यशाला का आयोजन
भोपाल :भारत का ज्ञान, हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन में “भारत केंद्रित शिक्षा से समृद्ध” आदर्श पाठ्यक्रम निर्माण के लिए, लेखकों में गहन भारतीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भारतीय दृष्टि के साथ, भारतीय ज्ञान परम्परा समृद्ध पाठ्यक्रम निर्माण करने की आवश्यकता है, इससे शिक्षा के मंदिरों से विद्यार्थियों में स्वत्व एवं राष्ट्र निर्माण का भाव जागृत एवं स्थापित होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का मूल ध्येय, श्रेष्ठ नागरिक निर्माण करना है, इसके लिए हम सभी को स्वत्व के साथ अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने बुधवार को भोपाल स्थित आरसीवीपी नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबंधकीय अकादमी के स्वर्ण जयंती सभागृह में उच्च शिक्षा विभाग अंतर्गत राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में आयोजित केंद्रीय अध्ययन मंडल की बैठक एवं कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर कही।
मंत्री श्री परमार ने भारतीय ज्ञान परम्परा के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए। श्री परमार ने कहा कि पाठ्यक्रम की पहली इकाई में ही “भारतीय ज्ञान परंपरा” का तथ्यपूर्ण समावेश करना है। विद्यार्थियों को यह ज्ञात होना चाहिए कि विश्व मंच पर इतिहास में भारत की क्या साख रही है। भारत का ज्ञान विश्व मंच पर सबसे पुरातन ज्ञान है, ईसा से भी हजारों वर्षों पूर्व, भारतीय समाज में सर्वत्र विद्यमान ज्ञान परम्परा का, पाठ्यक्रमों में भारतीय दृष्टि से परिपूर्ण समावेश करना है। विश्वमंच पर राष्ट्र के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए, हमें हीनभावना से बाहर आकर भारतीय दृष्टि से पाठ्य पुस्तकों में, भारतीय ज्ञान को समाहित करना है। श्री परमार ने कहा कि भारतीय परंपराओ पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर, युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में शोध एवं अनुसंधान की आवश्यकता है।
उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि विश्व भर में भारत आध्यात्म का केंद्र रहा है। मानवता एवं लोककल्याण, पुरातन से ही भारतीय दृष्टिकोण रहा है। पाठ्यक्रमों में भारतीय दर्शन “वसुधैव कुटुंबकम्” को समावेश करने की आवश्यकता है। हर क्षेत्र में भारतीय ज्ञान का अनंत भंडार है। इतिहास, अर्थशास्त्र, फिजिक्स, केमिस्ट्री एवं गणित सहित सभी विषयों में भारतीय पुरातन ज्ञान के तथ्यपूर्ण संदर्भों पर शोध एवं अनुसंधान करते हुए, सही परिप्रेक्ष्य में तथ्यपूर्ण संदर्भों को जनमानस के समक्ष लाने की आवश्यकता है। इसके लिए हमारी ज्ञान संपदा को तथ्यों एवं उदाहरण के साथ, सही परिप्रेक्ष्य में पाठ्यक्रमों से समावेश करना होगा। श्री परमार ने कहा कि स्वतंत्रता के पूर्व एवं बाद भी, भारतीय गौरव के सन्दर्भों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की आवश्यकता है। इससे विद्यार्थियों में भारतीय ज्ञान पर गर्व होगा और राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा मिलेगी। श्री परमार ने कहा कि विद्यार्थियों को मात्र आजीविका उपार्जन के लिए तैयार नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण में सहभागिता के लिए, श्रेष्ठ नागरिक निर्माण करने के उद्देश्य से पाठ्यक्रम निर्माण में विचार मंथन करें।