पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के बयान पर बवाल

भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी  का अमेरिका में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल  में देश में असहिष्णुता बढ़ने और हिंदू राष्ट्रवाद को खतरनाक बताने के बाद भारत में बवाल मचा है। अंसारी के बयान के बाद उनका देश में विरोध हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई अंसारी ने जो बातें कही हैं वो भारत के संदर्भ में सही हैं या फिर उनका मकसद केवल विवाद पैदा करना था।

हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारी नजमुल हुडा ने इस बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा है कि भारत को आजकल एक नए काल्पनिक चीज का सामना करना पड़ रहा है और वह है ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद‘। हुडा ने लिखा है कि अंसारी से ये पूछा जाना चाहिए क्या उन्हें ऐसे कार्यक्रम में शामिल होना चाहिए।

उन्होंने आगे लिखा है कि क्या भारतीय राष्ट्रवाद अपने आप में सांस्कृतिक है या सिविक? हालांकि ये कहना कि भारतीय राष्ट्रवाद सांस्कृतिक नहीं है यह भारतीय नेशनहुड से इनकार करना और इसे एक भौगोलिकता में शामिल करना जैसा होगा। जैसाकि अंग्रेजो ने किया था। आज भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को राष्ट्र से अलग करके नकारा जा रहा है। इसके जरिए देश को केवल एक राजनीतिक तत्व में बिना राष्ट्रीय या सांस्कृतिक आधार के रूप में दिखाया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत में अलग-अलग भाषाएं, सामाजिक रीति-रिवाज, धर्म होने का ये मतलब नहीं है कि यहां सांस्कृतिक रूप रेखा नहीं है। हिमालय से लेकर सामुद्रिक सीमा तक और सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज के भारत तक ये अनेकता रही है। पर सवाल है कि क्यों कुछ लोग भारत की सांस्कृतिक अनेकता से खुद को जोड़ नहीं पा रहे हैं। जबकि हकीकत तो ये है कि सत्य एक ही है। ‘एकम सत विप्रा बुद्धा वेदांत।’ (सच एक होता है लेकिन बुद्धिमान लोग इसे अलग-अलग नामों से बुलाते हैं)। भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को नकारने का एक बड़ा कारण है। मुस्लिम विजेताओं ने नस्लीय श्रेष्ठता और धर्म के नाम पर शासन करने के लिए अपना आधार बनाया था। दोनों एक-दूसरे को बल देते थे।

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