सहारा पर 50 हजार करोड़ के गबन का आरोप

सहारा ग्रुप (Sahara Group) ने 50,000 करोड़ रुपये के गबन का आरोपों पर सफाई दी है। कंपनी का कहना है कि वह निवेशकों की एक-एक पाई वापस कर चुकी है और इन आरोपों में कोई दम नहीं है। गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) ने सहारा ग्रुप की कंपनियों पर निवेशकों से 50,000 करोड़ रुपये जुटाने और फिर इन पैसों के गबन का आरोप लगाया है।

सहारा इंडिया ने एक बयान में कहा कि उस पर लगाया गया 50,000 करोड़ रुपये के गबन का आरोप सही नहीं है और हमारे पास इसके सबूत हैं। जब हम सारा पैसा वापस कर चुके हैं तो फिर गबन और हेराफेरी का सवाल कहां से पैदा होता है। SFIO सहारा की कंपनियों के खिलाफ इस कथित धोखाधड़ी की जांच कर रहा था लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी।

रोक हटाने की अपील
एसएफआईओ ने इस रोक को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की है और शुक्रवार को इस पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था। एजेंसी की तरफ से पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि सहारा की नौ कंपनियों के खिलाफ नवंबर 2018 से जांच चल रही थी जिसे इस साल 31 मार्च तक पूरा होना था।

एसएफआईओ ने कहा कि हाई कोर्ट ने कंपनी कानून की धारा 212 (3) के तरह जांच पर रोक लगाई है जो गलत है। इस धारा के तहत जांच तीन महीने में पूरी होनी चाहिए। एसएफआईओ ने सुप्रीम कोर्ट के 2019 के एक फैसले का हवाला दिया और कहा कि मंत्रालय ने इस जांच की समयसीमा बढ़ाकर 31 मार्च, 2022 कर दी है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वह दस्तावेजों को देखेंगे और उसके बाद सुनवाई की डेट देंगे।

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