पंजशीर की घाटी में तालिबान के खिलाफ किलेबंदी
काबुल
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए। देश के सबसे बड़े नेता की गैरमौजूदगी में इस कट्टर इस्लामिक संगठन का सामने करने के लिए याद आने लगी उसी समूह की जिसने 1970 और 80 के दशक में देश की ढाल का काम किया था। यही उत्तरी गठबंधन (Northern Alliance) एक बार फिर सामने आता दिख रहा है। पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने जंग जारी रहने का ऐलान किया। इसके बाद पंजशीर घाटी से अहमद मसूद ने भी ललकार लगाई है।
‘घुटने नहीं टेके जाएंगे’
मसूद ने वॉशिंगटन पोस्ट के लिए लिखे ऑपिनियन में उन्होंने साफ-साफ ऐलान किया है कि तालिबान को चुनौती दी जाएगी और घुटने नहीं टेके जाएंगे। उन्होंने अपने पिता अहमद शाह मसूद के पैर पर पैर रखने की बाद कही है जिन्हें ‘पंजशीर का शेर’ कहा जाता था। मसूद ने कहा है कि घाटी में उनके पिता के समय से जुटाए गए हथियार हैं क्योंकि यह हमेशा से पता था कि ऐसा दिन आएगा। उन्होंने लिखा है कि यहां के मुजाहिदीन लड़ाके फिर से तालिबान के खिलाफ लड़ने को तैयार हैं।
पंजशीर में ललकार
मसूद ने लिखा है कि तालिबान के नेता अगर हमला करते हैं तो उन्हें जंग में उतरना पड़ेगा। हालांकि, उन्होंने माना है कि तालिबान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मदद की जरूरत पड़ेगी क्योंकि तालिबान घाटी के अंदर खाने और अहम सामान की आपूर्ति में रोड़ा लगा सकता है।